नम सी स्याह रातों में, काले गहरे सन्नाटों में
शर्म से भरी रातों में, बेशर्म से जज्बातों में
सारे जहाँ की शर्म, बेशर्म है खुद में लपेटे हुए
ललचाई हुई नजरों से कुछ कागज़ समेटते हुए
ललचाई हुई नजरों से कुछ कागज़ समेटते हुए
खुद ही अपने दामन से, दूसरों के गम पोंछते हुए
खुद ही अपनी आबरू,सफ़ेद पोशों पर बिखेरते हुए
नम सी स्याह रातों में, गहरे काले सन्नाटों में
सारे जहाँ की शर्म, बेशर्म है खुद से लपेटे हुए
क्या खुदा की खुदाई, खुद आकर गवाही देगी
क्या बदनाम इन गलियों रोशनी दिखाई देगी
वे वैहशी है रात के उजाले के , क्या आज रात की विदाई होगी
वे श्याह को वेश्या का नाम देंगे, रातों को क्या स्याह दिखाई देगी
उन सफ़ेद पोशों को कैसे ज़ाने, क्या उन पर स्याह दिखाई देगी
नम सी स्याह रातों में
काले घने सन्नाटों में
खुदा की खुदाई गवाही देगी
क्या उन पर भी स्याह दिखाई देगी