कहीं को तो रुख है, इस हवा का फिर से
कहीं को तो रुख है, इस हवा का फिर से ।
वरना, इन सूखे पत्तों को हवा न मिलती
कहीं को तो रुख है, इस हवा का फिर से ।
वरना दरख्तों को, यूँ बेवजह
झगड़ने की वजह ना मिलती
कहीं को तो रुख है, इस हवा का फिर से
वरना, आपस में टकरा कर, टहनियों को
वरना, आपस में टकरा कर, टहनियों को
फिर टूटने की सजा ना मिलती ।।
कहीं को तो रुख है, इस हवा का फिर से
वरना, चिंगारी को हवा न मिलती
कहीं को तो रुख है, इस हवा का फिर से
वरना बिन पतझड़ जिंदगी वीरान न होती
कहीं को तो रुख है इस हवा का फिर से
वरना जिंदगी शमशान न होती ।
कहीं को तो रुख है, इस हवा का फिर से
वरना, चिंगारी को हवा न मिलती
कहीं को तो रुख है, इस हवा का फिर से
वरना बिन पतझड़ जिंदगी वीरान न होती
कहीं को तो रुख है इस हवा का फिर से
वरना जिंदगी शमशान न होती ।
रुख तो अब शमशान का है
वरना जिंदगी यूँ आसान न होती।।
वरना जिंदगी यूँ आसान न होती।।