Saturday, August 24, 2013

मधुशाला

अपने-अपने युग में सबको अनुपम, ज्ञात हुई अपनी हाला
अपनी धुन में देखो कैसा चलता देखो मधु का प्याला
नहीं कभी ये ऐसे छलका, अध-जल गगरी सी हाला
मेरे मन में ही जलन,  एक है  जलन की ज्वाला

मुझसे बेहतर पीने वाली कभी नहीं दिखी ज्वाला
मैं तो केवल एक ही शक्श जिसको चढ़ती मधुशाला
कुछ तो कहते पीर ये मक्का, कुछ कहते शंकर प्याला
एक नहीं सब पीते है पर कुछ कहते अमृत प्याला

मेरे से जो बढकर  पी ले  नहीं दिखा ऐसा ग्वाला
बस तुम तो जैसे पीते लगता ये कोलाहल हाला
कोई कहे इसे दिल की दवा कोई कहे दिल की ज्वाला
क्यूंकि अब ना रहे वह पीने वाले , अब ना रही वह मधुशाला

ना पीने वालों को देखो कहें इसे कोलाहल हाला
फिर भी हम इसको ही चखते शाँत करती ये ज्वाला
मन से आञ्चवन हम है करते छिड़का कर मधु प्याला
कभी नहीं यूँ हम  ऐसे पीते बिना चढ़ाये मधुशाला
तीव्र दिखे जब भी