चढ़ कर लाशों की दीवारों पर, दुनिया हमने देखी है
कटे हुए नर-मुंडों की माला, आज हमने पहनी है
दिखा इस मरघट पर कोई,सिन्धु लहू की तब बहनी है
कट कर खून जब गिरे धरा पर
शमशीर लहू की तब चखनी है
रहे न रंगीन एक भी होली
होली खून में अब करनी है
दिखा इस मरघट पर कोई
सिन्धु लहू की तब बहनी है
चढ़ कर लाशों की दीवारों पर, दुनिया हमने देखी है
कटे हुए नर-मुंडों की माला, आज हमने पहनी है
कोई बता दे, हर रात की सुबह, क्या सबने देखी है
कुछ तो मरघट को जाती, लाशें हमने देखी है
जल कर हुए थे राख़ हम
ख़ाक जिंदगी अब करनी है
इन आँखों में सैलाब नहीं
दिल में छिपे जज्बात नहीं
जिंदगी जीने की प्यास नहीं
जिंदगी लावे सी बहनी है जिंदगी लावे सी बहनी है
स्याह घनघोर रातों में वेदना हमसे कहती है
कोई बता दे, हर रात की सुबह, क्या सबने देखी है
कुछ तो मरघट को जाती, लाशें हमने देखी है