Friday, October 21, 2011

जलती हुई लौ को हमने, इन्ही हाथों से बुझाये थे

मैं ज़रा सा रुक कर सम्हाला ही था  
चाहा था कुछ, और कुछ होना ही था
मीठे सपने की रातें थी
कुछ गुदगुदी भरी बातें थी

ठीक तभी कुछ यादों की तन्हाई 
मन की गहराई  में यूँ उतर गयी 
भीगी पलकों को आंसू दे गयी 
दिल में तेरे प्यार की तलब रह गयी      

अब बिस्तर पर सलवटें  देख कर ही
हम पैमाने को होंठों से लगा लेते है 
एक बूँद भी पैमाने की हम
इस गले न उतार पाते है 

रख कर आँखों पर हाथ
जिंदगी के दिए जलाए थे
जलती हुई लौ को हमने
इन्ही हाथों से बुझाये थे




              

Saturday, October 1, 2011

अक्सर झरोखों से दिखते  है बादल
कुछ गरजते कुछ बरसते है बादल
कहीं खुशियाँ,  कही गम     है बादल
बहती हवा का संग              है बादल
                    बहती पवन संग    धरती का आँचल 
                    धरती की मानों पतंग      है बादल
                    तेरी प्रीत की ठण्ड           है बादल
                    हर दिल की तरंग            है बादल
कभी धीरे से चलते      है बादल
कभी आंधी में उमड़ते है बादल
देखो रिमझिम बरसते    है बादल
काले घनघोर बेडंग       है बादल
                     कभी आँखें मींचे मेरे संग है बादल
                     कुछ गरजते कुछ बरसते है बादल