मैं ज़रा सा रुक कर सम्हाला ही था
चाहा था कुछ, और कुछ होना ही था
मीठे सपने की रातें थी
कुछ गुदगुदी भरी बातें थी
ठीक तभी कुछ यादों की तन्हाई
मन की गहराई में यूँ उतर गयी
भीगी पलकों को आंसू दे गयी
दिल में तेरे प्यार की तलब रह गयी
अब बिस्तर पर सलवटें देख कर ही
हम पैमाने को होंठों से लगा लेते है
एक बूँद भी पैमाने की हम
इस गले न उतार पाते है
रख कर आँखों पर हाथ
जिंदगी के दिए जलाए थे
जलती हुई लौ को हमने
इन्ही हाथों से बुझाये थे