हर एक पल है, ज़िंदगी जीने के लिए
फिर वक़्त क्यूँ बेवफा, है मेरे लिए
मैं तन्हा जीता हूँ, ज़िंदगी
मिलता नहीं वक़्त, मरने के लिए
तू तलाश है, तू रक़ाब है,
तू ज़िंदगी जीने का मकसद
तू अँधेरे में चमकता महताब है
ज़िंदगी मेरी वफ़ा है
तू क्यूँ बनी बेवफ़ा है
क्यूँ तू छोड़ गयी तन्हा जीने के लिए
क्यूँ तू छोड़ गयी ये आँखें रोने के लिए
अब कैसे भीगेंगी आँखें, ख़ुशी से
जी रहा ज़िंदगी, हर एक पल बेबसी से
जिंदगी अब तस्वीर रहेगी
तनहा मेरी तक़दीर रहेगी
बहारों के मौसम में भी
जिंदगी ये वीरान रहेगी
क्यों है हर पल जीने के लिए
नहीं मिलता मुझे वक़्त मरने के लिए
फिर वक़्त क्यूँ बेवफा, है मेरे लिए
मैं तन्हा जीता हूँ, ज़िंदगी
मिलता नहीं वक़्त, मरने के लिए
तू तलाश है, तू रक़ाब है,
तू ज़िंदगी जीने का मकसद
तू अँधेरे में चमकता महताब है
ज़िंदगी मेरी वफ़ा है
तू क्यूँ बनी बेवफ़ा है
क्यूँ तू छोड़ गयी तन्हा जीने के लिए
क्यूँ तू छोड़ गयी ये आँखें रोने के लिए
अब कैसे भीगेंगी आँखें, ख़ुशी से
जी रहा ज़िंदगी, हर एक पल बेबसी से
जिंदगी अब तस्वीर रहेगी
तनहा मेरी तक़दीर रहेगी
बहारों के मौसम में भी
जिंदगी ये वीरान रहेगी
क्यों है हर पल जीने के लिए
नहीं मिलता मुझे वक़्त मरने के लिए
इस वक़्त सिर्फ एक ही नज़्म ज़ेहन में उभर कर आ रही है !
ReplyDeleteहज़ारों ख्वाहिशें ऐसी, कि हर ख्वाहिश पे दम निकले |
बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले ||
निकलना खुल्द (paradise) से आदम का , सुनते आये है लेकिन
बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूंचे से हम निकले !
मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते है, जिस काफ़िर पे दम निकले
हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी, कि हर ख्वाहिश पे दम निकले |
बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले ||
Courtesy - Mirza Asadullah Baig Khan