जो करती थी, फैलाकर दामन,
सबपे, खुशियों की बारिश
आज खुदके, दामन में सिमटी,
नहीं उसकी कोई ख्वाहिश
भर भर दुआएं, देती थी हमेशा
माँ, खुद पर बलाएँ लेती हमेशा
हे माँ ! ये कैसी है पहेली
हे माँ ! यूँ क्यूँ तू रहती अकेली
तेरे दामन में, मेरी रहती थी खुशियां
बस इतनी छोटी, सी थी दुनियां
तूने ही मुझे हँसना सिखाया
भर भर प्याले रज रज खिलाया
मेरी एक कराह पे, तूने जग क्यूँ लुटाया
हुई जो पीड़ा तुझे, मुझे क्यूँ न सुझाया
अब ये कैसा है खेल
न मेरा तुझसे - न तेरा मुझसे है मेल
ये कैसी है माया
ये कैसी है छाया
हे माँ ! ये कैसी है पहेली
हे माँ ! यूँ क्यूँ तू रहती अकेली
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