Sunday, July 28, 2013

जिंदगी के परदे यूँ नहीं सँवरते

ये जिंदगी  के परदे, यूँ ही नहीं सँवरते

कुछ जोर  हवा का होगा
कुछ जोर हवा का होगा
अनायास उड़ने का दम
इनमें ऐसे न भरा  होगा
ये जिंदगी  के परदे, यूँ ही नहीं सँवरते

हर बार आखिरी हो
दांव जिंदगी  का
ये भी नहीं समझते
हम भी नहीं समझते
ये जिंदगी  के परदे, यूँ ही नहीं सँवरते

हों रेशमी ये परदे
या सूत के बने हो
हो भोर का सवेरा
या शाम का बसेरा
ये भी  नहीं समझते
हम भी नहीं समझते
ये जिंदगी  के परदे, यूँ ही नहीं सँवरते

कुछ जोर  तुम लगाओ
भींच किवाड़ तुम लगाओ
ये फिर भी नहीं थमते
ये फिर भी नहीं सम्भलते
ये जिंदगी  के परदे, यूँ ही नहीं सँवरते

हम छुप गर भी जांये
क्यूँ पैर हमारे हैं दिखते
ये जिंदगी के परदे
यूँ नहीं संवरते
कुछ जोर हवा का होगा
वरना जिंदगी के परदे
यूँ बेवजह न उड़ते
यूँ बेवजह न उड़ते
ये जिंदगी  के परदे,यूँ ही नहीं सँवरते










No comments:

Post a Comment