अंतिम खड़ा रहा पहर पर, अंतिम आज ये वाणी है
देखता हूँ जब उसे मैं, ख़त्म हुई, जब यह कहानी है
आज निकल कर उस वहम से प्राण मेरे सुखकारी है
अंतिम है पहर आज का, अंतिम आज ये वाणी है
बीज पनप कर वृक्ष बने जब, वह ही सुखकारी है
नवीन प्रारम्भ को ख़त्म करे जो, वह ही मंगलकारी है
सोचता हूँ जब, अंत भला, या आरम्भ है अच्छा,
एक अंत से, नए प्रारम्भ की, देखो शुरू कहानी है
अंतिम है पहर आज का, अंतिम आज ये वाणी है
कोई कहे अंत है सच्चा मरना ही सत्य कहानी है
प्रारभ तो सब है करते, केवल अंत ही जुबांनी है
हो उद्गम कहीं भी नदी का, सागर ही कहानी है
झूठ हो चाहें कितना मीठा, सच तो कड़वी वाणी है
अंतिम है पहर आज का, अंतिम आज ये वाणी है
करलो कितना साज श्रृंगार, साथ चादर भी न जानी है
जल कर जब ख़ाक बने, तब समझी ये कहानी है
एक नए आरभ को तरसे, आज ख़त्म ये कहानी है
आज निकल कर उस वहम से प्राण मेरे सुखकारी है
अंतिम है पहर आज का, अंतिम आज ये वाणी है
देखता हूँ जब उसे मैं, ख़त्म हुई, जब यह कहानी है
आज निकल कर उस वहम से प्राण मेरे सुखकारी है
अंतिम है पहर आज का, अंतिम आज ये वाणी है
बीज पनप कर वृक्ष बने जब, वह ही सुखकारी है
नवीन प्रारम्भ को ख़त्म करे जो, वह ही मंगलकारी है
सोचता हूँ जब, अंत भला, या आरम्भ है अच्छा,
एक अंत से, नए प्रारम्भ की, देखो शुरू कहानी है
अंतिम है पहर आज का, अंतिम आज ये वाणी है
कोई कहे अंत है सच्चा मरना ही सत्य कहानी है
प्रारभ तो सब है करते, केवल अंत ही जुबांनी है
हो उद्गम कहीं भी नदी का, सागर ही कहानी है
झूठ हो चाहें कितना मीठा, सच तो कड़वी वाणी है
अंतिम है पहर आज का, अंतिम आज ये वाणी है
करलो कितना साज श्रृंगार, साथ चादर भी न जानी है
जल कर जब ख़ाक बने, तब समझी ये कहानी है
एक नए आरभ को तरसे, आज ख़त्म ये कहानी है
आज निकल कर उस वहम से प्राण मेरे सुखकारी है
अंतिम है पहर आज का, अंतिम आज ये वाणी है
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