हे पंचतत्व के पालक , हो तुम सृष्टि के आधार
तुझसे बिना न ही जीवन, न हीँ मृत्यु हो साकार
हम तो है प्राणी निर्बल, तुम सबल कृपालु महान
तुझसे बिना न ही जीवन, न हीँ मृत्यु हो साकार
करती हूँ विनती तुझसे, सुन ले अरज ये हमार
जहाँ घुप्प हो अँधेरा, तुम करते उज्ज्वल श्वेत प्रहार
जहाँ हो गमन असंभव, तुम कंचन करते श्रृंगार
हो बिन द्धेष भावना के, यह संपूर्ण अतुल्य संसार
नभ से हैँ उँची आकांक्षा, सागर से गहरा है मन
फिर भी न पहुँचे तुम तक, ये पंचतत्व का तन
हम तो है प्राणी निर्बल, तुम सबल कृपालु महान
तुझसे बिना न ही जीवन, न हीँ मृत्यु हो साकार
कहीं बादलों कि रिमझिम, कहीं अम्बर करे बौछार
ये अंश्रु की हैं बूंदे , या खुशियाँ है अपार
हे पालन हार, अरज सुन ले, अब हमार
विनती है अब तुझसे, झोली भर दे अब हमार
कभी रौद्र तुम न रहना, बस कल-कल बहते रह्ना
तुम सौम्यता को हरदम, इस प्रकृति मे भरते रह्ना
कभी सूखे न ये धरती, न हो वीरांन ये जहान
इसमें प्राण भरते रहना, कल्याण करते रह्ना
हे पंचतत्व के पालक , हो तुम सृष्टि के आधार
तुझसे बिना न ही जीवन, न हीँ मृत्यु हो साकार
तुझसे बिना न ही जीवन, न हीँ मृत्यु हो साकार
हम तो है प्राणी निर्बल, तुम सबल कृपालु महान
तुझसे बिना न ही जीवन, न हीँ मृत्यु हो साकार
करती हूँ विनती तुझसे, सुन ले अरज ये हमार
जहाँ घुप्प हो अँधेरा, तुम करते उज्ज्वल श्वेत प्रहार
जहाँ हो गमन असंभव, तुम कंचन करते श्रृंगार
हो बिन द्धेष भावना के, यह संपूर्ण अतुल्य संसार
नभ से हैँ उँची आकांक्षा, सागर से गहरा है मन
फिर भी न पहुँचे तुम तक, ये पंचतत्व का तन
हम तो है प्राणी निर्बल, तुम सबल कृपालु महान
तुझसे बिना न ही जीवन, न हीँ मृत्यु हो साकार
कहीं बादलों कि रिमझिम, कहीं अम्बर करे बौछार
ये अंश्रु की हैं बूंदे , या खुशियाँ है अपार
हे पालन हार, अरज सुन ले, अब हमार
विनती है अब तुझसे, झोली भर दे अब हमार
कभी रौद्र तुम न रहना, बस कल-कल बहते रह्ना
तुम सौम्यता को हरदम, इस प्रकृति मे भरते रह्ना
कभी सूखे न ये धरती, न हो वीरांन ये जहान
इसमें प्राण भरते रहना, कल्याण करते रह्ना
हे पंचतत्व के पालक , हो तुम सृष्टि के आधार
तुझसे बिना न ही जीवन, न हीँ मृत्यु हो साकार
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