Saturday, December 14, 2013

जिंदगी एक ईट की दिवार नहीं,  यह तो एक आशियाना है 

 जिंदगी एक ईट की दिवार नहीं, 
यह तो एक आशियाना है 

इसमें कुछ आड़े टेडें रास्तों का ताना बाना है।
कभी ये मंदिर की सीढ़ी
कभी ख़्वाजा की दरगाह का धागा है 

जिंदगी एक ईट की दिवार नहीं, 
यह तो एक आशियाना है 

इसमें कुछ बहते कुछ ठहरे पलों का अफसाना है ।
कभी ये सागर का शोर 
कभी बारिश की बूंदों का खजाना है ।

जिंदगी एक ईट की दिवार नहीं, 
यह तो एक आशियाना है 

इसमें कुछ बिखरे संवरते पलों का तराना है।
कभी ये रेत सा हल्का
कभी भारी चट्टान का ठिकाना है।

जिंदगी एक ईट की दिवार नहीं, 
यह तो एक आशियाना है 

इसमें कुछ पल सपनों की यादों का खजाना है ।
कभी ये जेठ की तपन
कभी सावन के मोर का चहचहाना है ।

जिंदगी एक ईट की दिवार नहीं, 
यह तो एक आशियाना है 

इसमें कुछ मिट्टी की खुशबू तो कीचड़ का गंधाना है।
कभी ये इत्र की महक
कभी इसे मैले कुचैल कपड़ों का गट्ठर कहलाना है।

जिंदगी एक ईट की दिवार नहीं, 
यह तो एक आशियाना है 

इसमें कभी सुर की मिठास कभी क्रंदन भी आना है ।
कभी ये राग - स्वर  
कभी कर्कश ध्वनि का पैमाना है।




आज मैंने जाना है 
खुद का मुजरिम हूँ मैं ये आज मैंने जाना है
जिंदगी बीते लम्हों का आशियाना है  
मीनार नहीं इसमें 
सी रहा हूँ घावों को 

अंतिम खड़ा रहा पहर पर, अंतिम आज ये वाणी है

अंतिम खड़ा रहा पहर पर, अंतिम आज ये वाणी है 
देखता हूँ जब उसे मैं, ख़त्म हुई,  जब यह  कहानी है 
आज निकल कर उस वहम से प्राण मेरे सुखकारी है 
अंतिम है पहर आज का, अंतिम आज ये वाणी है 

बीज पनप कर वृक्ष बने जब,  वह ही सुखकारी है 
नवीन प्रारम्भ को ख़त्म करे जो, वह ही मंगलकारी है  
सोचता हूँ जब, अंत भला, या आरम्भ है अच्छा, 
एक अंत से, नए प्रारम्भ की, देखो शुरू  कहानी है 
अंतिम है पहर आज का, अंतिम आज ये वाणी है 

कोई कहे अंत है सच्चा मरना ही सत्य कहानी है 
प्रारभ तो सब है करते,  केवल अंत ही जुबांनी  है
हो उद्गम कहीं भी नदी का,  सागर ही कहानी  है
झूठ हो चाहें कितना मीठा,  सच तो कड़वी वाणी है
अंतिम है पहर आज का, अंतिम आज ये वाणी है 

करलो कितना साज श्रृंगार, साथ चादर भी न जानी है
जल कर जब  ख़ाक बने,  तब समझी ये कहानी है  
एक नए आरभ को तरसे, आज  ख़त्म ये कहानी है 
आज निकल कर उस वहम से प्राण मेरे सुखकारी है
अंतिम है पहर आज का, अंतिम आज ये वाणी है










Saturday, August 24, 2013

मधुशाला

अपने-अपने युग में सबको अनुपम, ज्ञात हुई अपनी हाला
अपनी धुन में देखो कैसा चलता देखो मधु का प्याला
नहीं कभी ये ऐसे छलका, अध-जल गगरी सी हाला
मेरे मन में ही जलन,  एक है  जलन की ज्वाला

मुझसे बेहतर पीने वाली कभी नहीं दिखी ज्वाला
मैं तो केवल एक ही शक्श जिसको चढ़ती मधुशाला
कुछ तो कहते पीर ये मक्का, कुछ कहते शंकर प्याला
एक नहीं सब पीते है पर कुछ कहते अमृत प्याला

मेरे से जो बढकर  पी ले  नहीं दिखा ऐसा ग्वाला
बस तुम तो जैसे पीते लगता ये कोलाहल हाला
कोई कहे इसे दिल की दवा कोई कहे दिल की ज्वाला
क्यूंकि अब ना रहे वह पीने वाले , अब ना रही वह मधुशाला

ना पीने वालों को देखो कहें इसे कोलाहल हाला
फिर भी हम इसको ही चखते शाँत करती ये ज्वाला
मन से आञ्चवन हम है करते छिड़का कर मधु प्याला
कभी नहीं यूँ हम  ऐसे पीते बिना चढ़ाये मधुशाला
तीव्र दिखे जब भी

Sunday, July 28, 2013

जिंदगी के परदे यूँ नहीं सँवरते

ये जिंदगी  के परदे, यूँ ही नहीं सँवरते

कुछ जोर  हवा का होगा
कुछ जोर हवा का होगा
अनायास उड़ने का दम
इनमें ऐसे न भरा  होगा
ये जिंदगी  के परदे, यूँ ही नहीं सँवरते

हर बार आखिरी हो
दांव जिंदगी  का
ये भी नहीं समझते
हम भी नहीं समझते
ये जिंदगी  के परदे, यूँ ही नहीं सँवरते

हों रेशमी ये परदे
या सूत के बने हो
हो भोर का सवेरा
या शाम का बसेरा
ये भी  नहीं समझते
हम भी नहीं समझते
ये जिंदगी  के परदे, यूँ ही नहीं सँवरते

कुछ जोर  तुम लगाओ
भींच किवाड़ तुम लगाओ
ये फिर भी नहीं थमते
ये फिर भी नहीं सम्भलते
ये जिंदगी  के परदे, यूँ ही नहीं सँवरते

हम छुप गर भी जांये
क्यूँ पैर हमारे हैं दिखते
ये जिंदगी के परदे
यूँ नहीं संवरते
कुछ जोर हवा का होगा
वरना जिंदगी के परदे
यूँ बेवजह न उड़ते
यूँ बेवजह न उड़ते
ये जिंदगी  के परदे,यूँ ही नहीं सँवरते