पंक्तियाँ कितनी भी हों किताब में
हांसिये कितने भी हों हिसाब में
गलतियाँ हों वो भी ब्याज में
माँ न रखती है इन्हें हिसाब में
लो रख लिया आज उसे(माँ) हिसाब में
नौ मास लिए उसकी कोख़ के पास
प्रसव के बाद उसके कलेजे के साथ
वर्ष तीन न रहा कभी उसके बिन
हर पहर, हर वजह, करता था जिरह
माँ के आँचल से ही तृप्त होती थी विरह
वर्ष सात के कोमल मन का
ख़त्म करती तू सिरह
मैया मैं अब बारह बरस का
खुद को समझू अठारह बरस का
बातें करता हु मैं जितनी सागर में हों मछली जितनी
तेरी दिल की एक न मानू अपनी हठ पर तुझको वारूँ
रोज रोज की नयी कहानी
एक के बाद एक परेशानी
मैंने तेरी एक न मानी
अब तुझको मैं समझू बच्चा
गलत हूँ पर मैं समझू सच्चा
इस बाईस की दहाई में तुझको झोका खाई में
खुद ही करता हूँ फैसला तुझको रखू मैं अकेला
तुझको मैं एक बार न पूछता
तेरे आंशुओं से कलेजा है सूखता
आज है मेरी सगाई जी
माँ पर खुशियाँ है छाई जी
उसे पता क्या वह संग अपने
अपनी सामत है लाई जी
रोज रोज की चिक चिक कलह
घरवाली रहती तुझसे खिजाई जी
कहती है मुझसे कर दो उसे पराई जी
उस दिन मैं था अढतिस का
माँ का मन भी अढतिस का
सहसा उसका मन कचोट गया
मुझे धीरे से बोल दिया
तू मुझे किनारे छोड़ दे
अपनी ब्याहता से बोल दे
पड़ी रहूंगी एक कोने में
देना एक बिछौनिया सोने में
सदा करूगी तुझको प्यार
तू लेले मेरे आशीष दुलार, तू लेले मेरे आशीष दुलार
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